“जब सरसों के खेतों में खिलती थी दोस्ती”
एक गाँव में दो बच्चे, रामु और श्यामु, बहुत अच्छे दोस्त थे। वे रोज स्कूल जाते और साथ में पढ़ाई करते थे। माँ-बाप की उम्मीदें और सपने बच्चों के नजरों में चमक आते थे।
सरसों के खेतों में जाकर खेलना दोनों के लिए एक खास पसंदीदा गतिविधि थी। रोजाना दोपहर के समय, वे किसानों के देखभाल में उस खूबसूरत सरसों के खेत के पास जाते और मस्ती में बहुत समय बिताते थे।
एक दिन, एक बड़ा अंधाकार छाया और दोनों दोस्त खेत के एक कोने में उल्टे पाँव भागने लगे। वे पीछे मुड़कर देखा तो देखा कि एक भालू दोनों के पीछे है! रामु डरकर ज़द में दौड़ा, लेकिन श्यामु वहाँ ही रुक गया। उसने बच्चे को एक कठिनाई से कहा, “रुको और डरो मत, हमें भागने की बजाय समझने की कोशिश करनी चाहिए।”
श्यामु ने धीरे से भालू की ओर अपना हाथ बढ़ाया। वह उसे झूला दिया और खेत के दूसरे कोने में ले गया, जहाँ से वे अपने घर की ओर चले।
इस घटना ने दोनों दोस्तों के बिच एक और गहरी बोंधन की जड़ें बुन दी। इससे दिख गया कि सच्ची दोस्ती कभी हाथ से न जाने दें, क्योंकि यह हमेशा हमें सहारा और साथ देगी। रामु और श्यामु की दोस्ती बाद में भी मज़बूत बनी रही, क्योंकि उन्होंने एक-दूसरे पर भरोसा किया।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि अक्सर हमारे साथ मजेदार खेलने वाले हमारे असली दोस्त होते हैं, जो हमें हर मुश्किल समय में साथ निभाते हैं।